लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर,बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर काम कर रहा है और इस फार्मूले में ठाकुर,यादव और पिछड़ा वर्ग के साथ-साथ,दलित फार्मूले को लेकर,भाजपा ने कौन सा ट्रंप कार्ड खेल डाला है ? दरअसल उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सामंजस्य से साधने के लिए,उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आयोग का गठन कर दिया है l पूर्व विधायक बैजनाथ रावत को इसका अध्यक्ष बनाया गया है l पूर्व विधायक बेचन राम और जीत सिंह खरवार को आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है l बाराबंकी के बैजनाथ रावत अनुसूचित जाति से हैं l भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले रावत तीन बार विधायक, एक बार सांसद और यूपी सरकार में बिजली राज्य मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं l
उनकी नियुक्ति को अनुसूचित जाति को पार्टी से जोड़ने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है l गोरखपुर के पूर्व विधायक बेचन राम और सोनभद्र के रहने वाले जीत सिंह खरवार को उपाध्यक्ष बनाने के अलावा अन्य 16 सदस्य भी नामित किए गए हैं l इससे पहले योगी सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग और महिला आयोग का भी गठन करते हुए भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को समायोजित किया था l पूर्व सांसद राजेश वर्मा को राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था l वहीं, बबीता चौहान को उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया गया l साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग में उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई थी l
दरअसल इस लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव का पिछड़ा,दलित और अल्पसंख्यक का फार्मूला काफी हद तक हिट रहा और इस बीच इन्हीं तीनों वर्गों को सेट करने के लिए,भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जहां एक तरफ महिला आयोग की अध्यक्ष बबीता सिंह को बनाकर,ठाकुर वोट बैंक को सेट करने का प्रयास किया,तो वहीं दूसरी तरफ अपर्णा यादव को उपाध्यक्ष बनाकर,पिछड़ा यानी ओबीसी वर्ग को सेट करने की कोशिश शुरू कर दी है और पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष राजेश वर्मा जैसे सीतापुर के पूर्व सीनियर सांसद को जिम्मेदारी देकर,कुर्मी समाज को संदेश देने की कोशिश की,तो वहीं अब एससी एसटी आयोग के अध्यक्ष के रूप में बैद्यनाथ रावत की नियुक्ति को दलितों में प्रचारित करने का अहम जरिया भी भाजपा आगामी चुनाव में बनाएगी l इससे पहले अल्पसंख्यकों को सेट करने के लिए पसमांदा मुस्लिम समाज को लेकर भी बीजेपी लगातार कोशिश करती रही है l यही नहीं सदस्यता अभियान में भी बाकायदा मौलाना को ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम वर्ग को जोड़ने की हिदायत दी गई थी l फिलहाल बीजेपी का यह सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला आने वाले समय में बीजेपी को फायदा देता हुआ भी दिख रहा है l अब ऐसे में अखिलेश के PDA पर क्या खतरे के बादल मंडरा रहे हैं? यह भी जल्द ही साफ हो जाएगा l