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रायबरेली में भाजपा की अंदरूनी राजनीति,करेगी बेड़ा गर्क !

India Junction News Bureau

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Published: May 15, 2024 6:25 pm

देश की सबसे हॉट सीट में शामिल रायबरेली कांग्रेस और भाजपा के लिए नाक का सवाल बन गई है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है,कि दोनों पक्षों के दिग्गज नेता लगातार वहां डेरा डाले हैं l सीट की अहमियत इसी से समझी जा सकती है,कि दो दिन पहले रायबरेली पहुंचे गृहमंत्री अमित शाह ने जनसभा में कहा,‘यदि एक सीट जीतकर 400 पार का मतलब पूरा हो जाए तो वह करना चाहिए या नहीं.. l भीड़ से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिलने पर उन्होंने कहा, ‘रायबरेली में कमल खिला दो, चार सौ पार अपने आप हो जाएगा l कांग्रेस ने इस अहम सीट पर अपने कद्दावर नेता राहुल गांधी को उतारा है, ऐसे में पूरी कांग्रेस पार्टी गढ़ बचाने में जुटी है l मिशन 400 के लिए अमित शाह भाषण तक ही नहीं सीमित रहे l

राहुल गांधी की राह मुश्किल बनाने और इलाके के 11 प्रतिशत ब्राह्मणों का समर्थन हासिल करने के लिए वह सपा विधायक मनोज पांडेय के घर भी पहुंच गए l मनोज आसपास के जिलों में ब्राह्मण समाज का बड़ा चेहरा माने जाते हैं lदूसरी ओर, भाजपा प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह के नामांकन में भाजपा की सदर विधायक अदिति सिंह से लेकर पूर्व एमएलसी राकेश प्रताप सिंह, सरेनी के पूर्व विधायक धीरेंद्र बहादुर सिंह और बछरावां के पूर्व विधायक राजाराम त्यागी गैरहाजिर थे l कांग्रेस कार्यकर्ता कह रहे थे,कि जब भाजपा के ही लोग दिनेश के साथ नहीं हैं तो लड़ाई ही कहां है? लेकिन, शाह ने अपने मंच पर इन सभी को एक साथ लाकर ऐसी बातों पर विराम लगा दिया lयूपी की राजनीति में जातियों की भूमिका इस बार के चुनाव में भी काफी अहम मानी जा रही है lरायबरेली के गांधी परिवार का गढ़ होने, नामांकन के बाद से रायबरेली में प्रियंका के डेरा डालने और इलाकाई भाजपाई क्षत्रपों के सक्रिय न होने से लड़ाई में कांग्रेस बीस थी l लेकिन,शाह के सियासी पैंतरे से चुनाव दिलचस्प हो गया है l इसका असर भी तत्काल दिखा l शाह की रैली के दूसरे दिन से ही राहुल की रायबरेली में वापसी और प्रियंका के साथ साझा सभाएं शुरू हो गईं l

आगे राहुल और सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ प्रियंका गांधी व डिंपल यादव के साझा रोड शो की तैयारियों के भी प्रयास हैं l छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहले से ही डटे हुए हैं l पर बीते 10 सालों में जब से केंद्र में मोदी सरकार आई तब से लेकर अब तक रायबरेली के जमीनी हालात ये हैं,कि न तो राहुल के लिए चुनाव एकतरफा रह गया है और न ही दिनेश की राह आसान है l 1952 से हुए 20 चुनावों में से कांग्रेस का इस सीट पर 17 बार कब्जा रहा है lफिरोज गांधी और इंदिरा गांधी तो सांसद रहे ही, सोनिया लगातार पांच बार सांसद रहीं l यहां के लोगों का यह मानना रहा है की, वे गांधी परिवार को इसलिए चुनते हैं,क्योंकि वे या तो प्रधानमंत्री चुनते हैं या प्रधानमंत्री के दावेदार को l फिलहाल अंदर खाने लोगों के मन में यह सवाल भी लगातार कौध रहा है,कि गांधी फैमिली का उत्तराधिकारी होने से राहुल को पीएम बनने का सपना तो वह देखते हैं,लेकिन क्या गारंटी है कि चुनाव जीतने के बाद रायबरेली नहीं छोड़ेंगे? क्योंकि राहुल इस बार केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ रहे हैं l दिनेश प्रताप सिंह पिछला चुनाव सोनिया गांधी से हारे थे, लेकिन उनकी जीत का अंतर घटाने में सफल हुए थे l

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स्थानीय स्तर पर सुलभ होने और मंत्री के रूप में लोगों के बीच उपलब्धता पक्ष में जाती है l यहां मायावती ने अपने प्रत्याशी के तौर पर ठाकुर प्रसाद यादव को उतार कर यादव वोट में सेंधवरी करने की कोशिश की है l ठाकुर प्रसाद सरेनी विधानसभा सीट से दो बार भाग्य आजमा चुके हैं l करीब 23 फीसदी ओबीसी जातियों वाली इस सीट पर सपा प्रत्याशी के मैदान में न होने से बसपा ने यादव उम्मीदवार का दांव चला है l सपा व कांग्रेस गठबंधन कर चुनाव लड़ रहे हैं l फिलहाल अब बरेली की धरती पर गठबंधन की राजनीति की वह बयार साफ तौर पर बह रही है,जिसमें सबसे ज्यादा मजबूत स्थिति भले ही राहुल गांधी की हो, लेकिन आम जनता के दिल में राहुल गांधी के वायनाड से लड़ने को लेकर भी,तमाम सवाल उठ रहे हैं ? अब ऐसे में देखना यह होगा कि,उत्तराधिकारी के रूप में राहुल गांधी अपनी इस सीट पर कितना बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं

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