आज देश भर में वट सावित्री व्रत का त्योहार मनाया जा रहा है सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी उम्र और पति की बढ़ोतरी के किए ये व्रत रखती है सनातन धर्म शास्त्रों में और भी कई व्रतों का वर्णन मिलता है. लेकिन ज्येष्ठ अमावस पर मनाया जाने वाला यह व्रत विशेष महत्व रखता है. वट यानी बरगद का वृक्ष हिंदू धर्म में पूजनीय है, इसमें त्रिदेवों का वास है. जिस तरह पीपल को विष्णुजी का प्रतीक माना जाता है, उसी तरह बरगद को शिव जी का प्रतीक माना जाता है.यूं तो हर पेड़-पौधे को उपयोगी मानकर उसकी रक्षा करने की परंपरा है. लेकिन वटवृक्ष या बरगद की पूजा का खास महत्व बताया गया है. आज हम आपतो इस व्रत से जुड़ी कुछ अहम बाते बताते है आखिर क्यों वट सावित्री का व्रत मनाया जाता है और इस दिन क्यों वटवृक्ष की पूजा की जाती है.बरगद का वृक्ष एक दीर्घजीवी विशाल वृक्ष है. हिन्दू परंपरा में इसे पूज्य माना जाता है. प्राचीन काल में अलग अलग देवों से अलग अलग वृक्ष उत्पन्न हुए और उस समय यक्षों के राजा मणिभद्र से वटवृक्ष उत्पन्न हुआ – यह वृक्ष त्रिमूर्ति का प्रतीक है, इसकी छाल में विष्णु ,जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिवजी का वास माना जाता है. यह प्रकृति के सृजन का प्रतीक है. इसलिए संतान के इच्छित लोग इसकी विशेष पूजा करते हैं.वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुन: जीवित किया था. तब से ये व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से भी जाना जाता है.
वट सावित्री के व्रत पर सुहागिन महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान यमराज, के साथ साथ सावित्री और सत्यवान की पूजा करती हैं. बरगद के वृक्ष पर सूत के धागा लपेटकर अंखड सौभाग्य की कामना करती हैं आपको बता दे की वट सावित्री व्रत एक साल में 2 बार मनाया जाता है पहला वट सावित्री व्रत आज है, लेकिन दूसरा कब है? क्या आप जानते हैं? केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह में ही दो बार पड़ता है. एक व्रत कृष्ण पक्ष में और दूसरा व्रत शुक्ल पक्ष में रखा जाता है. आइए जानते हैं इसके बारे में.वट सावित्री का दूसरा व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है. उसे वट पूर्णिमा व्रत के नाम से भी जानते हैवट सावित्री व्रत उत्तर भारत के राज्यों में रखा जाता है, जबकि वट पूर्णिमा का व्रत महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों में रखा जाता है. इन दोनों ही व्रत में पतिव्रता सावित्री और सत्यवान की कथा पढ़ते हैं. देवी सावित्री पतिव्रता धर्म के बल पर अपने पति के प्राण यमराज से वापस लेकर आई थीं.
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