लोकसभा चुनाव के बीच उत्तर प्रदेश का चुनावी माहौल पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती की ‘रहस्यमयी’ राजनीतिक चालों से घिरा हुआ है. चुनाव की शुरुआत में विपक्ष ने बसपा को ‘बीजेपी की बी टीम’ बताकर निशाने पर लिया. हालांकि, तीसरे चरण तक मायावती इस लेबल को हटाने के लगभग करीब पहुंच गई थीं. अपने भतीजे और पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद की मदद से बसपा ना सिर्फ बीजेपी के रथ को रोकने की कोशिशें करती दिखीं, बल्कि इंडिया ब्लॉक (सपा-कांग्रेस) के खिलाफ भी लड़कर राजनीतिक हालात को बदल रही थीं.खुद मायावती को ज्यादा चुनावी रैलियों पर फोकस करते देखा गया. लेकिन फिर अचानक जल्दबाजी में लिए गए कई निर्णयों से बसपा ने अपने बारे में एक कमजोर धारणा बना ली. हालांकि, इस सवाल का जवाब दिया जाना बाकी है कि पॉलिटिक्स या प्रेशर के बीच मायावती का सियासी प्लान क्या है?
सरल शब्दों में कहें तो मायावती अपनी छवि बदलने के लिए सब कुछ कर रही थीं. ज्यादा से ज्यादा एक्टिव होने से लेकर बीजेपी पर अपने हमले बढ़ाने और सभी वर्गों तक पैठ बनाने की मशक्कत करते दिखीं. तीसरे चरण तक उम्मीदवार चयन से मायावती की रणनीति को लेकर चर्चाएं शुरू हो गईं. माना गया कि शायद ‘बहन जी’ बीजेपी से मुकाबला करने के लिए बड़े फैसले करने से नहीं हिचक रहीं हैं.नैरेटिव तब बदलना शुरू हुआ, जब उन्होंने आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी से यह कहकर हटा दिया कि वो अभी अपरिपक्व हैं. इतना ही नहीं, प्रमुख सीटों पर उम्मीदवारों को भी बदल दिया. ये वो सीटें थीं, जिन पर सपा और विपक्षी नेताओं के समीकरण गड़बड़ा सकते थे और बीजेपी को मदद मिल सकती थी. मायावती की राजनीतिक चालों में होने वाले उतार-चढ़ाव से कयासबाजी भी तेज हो गई और उनके मन में क्या चल रहा है, यह जानने की उत्सुकता भी बढ़ती गई.यूपी में अभी भी 27 सीटों पर चुनाव होना बाकी है और मायावती जिस तरह से मैदान में उतरती हैं
, वो चुनावी मैदान में महत्वपूर्ण लहर पैदा कर सकता है. चूंकि मतदान के पांच चरण पहले ही पूरे हो चुके हैं, इसलिए बसपा प्रमुख के राजनीतिक फैसलों ने एक नई बहस छेड़ दी है. जिस बात पर हैरानी जताई जा रही है- वह यह है कि पार्टी ने अपनी कमजोर छवि पेश करते हुए 14 उम्मीदवारों को बदल दिया है. सवाल यह है कि क्या मायावती अपनी चुनावी रणनीतियों में लड़खड़ा गई हैं या बीजेपी को मौन समर्थन देने का आरोप यहीं बना रहेगा?इस चुनाव में दो महत्वपूर्ण मोड़ आए, जब बसपा को मायावती के फैसलों के कारण काफी चुनावी जोखिम का सामना करना पड़ा. पहला झटका चुनाव के बीच भतीजे आकाश आनंद को हटाकर राष्ट्रीय संयोजक पद से हटा दिया गया. इससे बसपा के युवा वोटर्स में निराश देखी जा रही है और वे विकल्प की तलाश में समाजवादी पार्टी का रुख कर रहे हैं.
मायावती ने खुद सोशल मीडिया पर अपने फैसले की जानकारी दीऐसा ही दूसरा कदम जौनपुर में टिकट को लेकर उठाया. बसपा ने पहले पूर्व सांसद और बाहुबली नेता धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला को टिकट दिया, फिर रातोंरात टिकट काटना पड़ा. मायावती ने अपने मौजूदा सांसद श्याम सिंह यादव का टिकट काटकर धनंजय की पत्नी को समायोजित किया था. लेकिन, उन्हें तब तगड़ा झटका लगा, जब जेल से बाहर आकर धनंजय सिंह ने कथित तौर पर बीजेपी के साथ समझौता कर लिया. मायावती को वापस श्याम सिंह यादव को टिकट देना पड़ा.
25 मई को छठे चरण में यूपी की 14 सीटों पर मतदान है. इनमें सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फूलपुर, इलाहाबाद, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, डुमरियागंज, बस्ती, संत कबीर नगर, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछलीशहर और भदोही में चुनाव हो रहे हैं. 2019 में बीजेपी ने 9 सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि चार बीएसपी के पास और एक समाजवादी पार्टी के पास गई थी