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प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव बीजेपी के लिए,गले की फांस क्यों ?

India Junction News Bureau

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Published: April 7, 2025 6:01 pm

इस समय रामनवमी बीत जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में संगठन के अंदर प्रदेश अध्यक्ष ना बनाए जाने के बाद,तमाम तरह के सवाल उठने लाजिमी है,लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति में योगी के लिए यह अग्नि परीक्षा क्यों उतनी खास है,जितनी 2024 के लोकसभा चुनाव में योगी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाना ? आखिर जातीय संतुलन में बीजेपी क्यों उलझी हुई है और स्वर्ण,पिछड़ा,दलित की रेस में भाजपा नेतृत्व किसे प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौपेगा ? यह कुछ ऐसे सवाल है,जिनका जवाब अपनी याद कि रिपोर्ट में हम आपको दिखाएंगे भी और बताएंगे भी l दरअसल इस पूरे घटनाक्रम के लिए आज से तकरीबन 11 साल पहले चलना होगा l बात थी 2014 के लोकसभा चुनाव की l बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे लक्ष्मीकांत वाजपेई,जिनकी अगुवाई में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार होते हुए भी लोकसभा चुनाव 2014 के चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था l बदले में बीजेपी यूपी में बड़ी जीत हासिल कर,पूरे देश में डंका बजाने में कामयाब रही l पूरा देश मोदीमय हो गया l पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेई ने अग्नि परीक्षा पास कर ली l

उसके बाद था,वक्त 2017 का l उत्तर प्रदेश में यूपी विधानसभा चुनाव हुआ और कमान केशव प्रसाद मौर्य यानी पिछड़े वर्ग के हाथों में थी l यह वही समय था,जब सरकार बनाने को लेकर तमाम उठा पटक के बीच,मौर्य के चाहने वालों ने लॉबिंग भी कर डाली थी और यह वही समय था ,जब विधानसभा के चुनाव में बीजेपी सारी गोटिया अपने पाले में लाकर,यूपी में सरकार बनाने में कामयाब हो गई और बीजेपी ने यूपी में एक मुख्यमंत्री और दो उपमुख्यमंत्री दिए l केशव प्रसाद के पीडब्ल्यूडी मंत्री बनने के बाद,प्रदेश अध्यक्ष की कमान महेंद्र नाथ पांडे यानी,स्वर्ण के हाथ में सौंपी गई l महेंद्र नाथ पांडे के लिए चुनौती था,2019 का लोकसभा चुनाव l संगठन और पार्टी के अच्छे तालमेल का परिचय देते हुए,भाजपा को यूपी में सीटों की बढ़त दिलाने के साथ केंद्र में पुनः बीजेपी की सरकार आई और उत्तर प्रदेश में महेंद्र नाथ पांडे ने भी अपनी भूमिका यानी स्वर्ण नेतृत्व ने अपनी भूमिका मजबूती के साथ निभाई l उधर,महेंद्र नाथ पांडे केंद्र में मंत्री बने और अब प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर,ओबीसी नेता स्वतंत्र देव के हाथों में जा पहुंची l

स्वतंत्र देव के सामने 2022 का विधानसभा चुनाव चैलेंज बनकर खड़ा हुआ,लेकिन स्वतंत्र देव बेदाग छवि के साथ,योगी को पुनः मुख्यमंत्री बनाने में एक अहम रोल अदा करते दिखाई दिए l स्वतंत्र देव सिंह को भी योगी सरकार में मंत्री बनाया गया और तब से उत्तर प्रदेश में बीजेपी के संगठन को मजबूत करने के लिए भूपेंद्र चौधरी के हाथो में कमान है l माना जा रहा है,कि भूपेंद्र चौधरी को भी प्रमोशन मिलकर इन्होंने इनको भी कैबिनेट में शामिल किया जा सकता है l यानी इन्हें मंत्री पद से नवाजा जा सकता है,तो अब सवाल फिर वही का वही,की आखिर उत्तर प्रदेश भाजपा की कमान किसके हाथ में सौंपी जाए,

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दरअसल,भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है,कि लक्ष्मीकांत वाजपेई और महेंद्र नाथ पांडे के स्वर्णिम काल में बीजेपी को आगे बढ़ते देख,यानी 2014 और 19 का चुनाव बीजेपी ने मजबूती के साथ देखा तो वही,17 और 22 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए,या यूं कहे कि योगी के लिए बहुत ही ज्यादा मजबूत स्थिति में देखा गया l यानी दो बार योगी को भी इस बार मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला और वह समय था,दो मजबूत ओबीसी नेता केशव प्रसाद मौर्य और स्वतंत्र देव का,जिसमें उन्होंने अपने प्रदेश अध्यक्ष कार्यकाल के दौरान भाजपा को ऊंचाइयों तक पहुंचाया था,लेकिन 2022 से लेकर अब तक,भूपेंद्र चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी संभावित सीटों को पाने में नाकामयाब रही थी l

अब ऐसे में बीजेपी के सामने बहुत बड़ी चुनौती है,कि बीजेपी अगड़ी जाति को आगे लाते हुए,नेतृत्व किसी ब्राह्मण के हाथ में देती है,या फिर पिछड़ा नेताओं की नाराजगी से बचने के लिए फिर से किसी पिछड़े नेता का नाम आगे लाया जाता है l या फिर राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू की तरह अचानक एक बड़ी लकीर खींचते हुए,उत्तर प्रदेश में भी किसी दलित को,प्रदेश अध्यक्ष ही कमान सौंप कर बीजेपी दलित वोट बैंक को मजबूत करने के लिए अपना कदम आगे बढ़ाती है l फिलहाल,अंदरुनी कशमकश से गुजर रही,भाजपा के लिए यह समय किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होगा l

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