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जातीय समीकरण से चमत्कार या फिर कम मुआवजे में विकास? अयोध्या में BJP की हार से हर कोई अचंभित

India Junction News Bureau

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Published: June 6, 2024 2:39 pm

जातीय समीकरण से चमत्कार या फिर कम मुआवजे में विकास? अयोध्या में BJP की हार से हर कोई अचंभित

अखिलेश यादव के दलित चेहरे ने बीजेपी के धुरंधर ठाकुर चेहरे को हराकर दिखा दिया कि अयोध्या पर कमंडल नहीं मंडल भारी है. क्या ये जातीय समीकरणों का चमत्कार है या फिर लोगों को कम मुआवजे का विकास रास नहीं आया! फैजाबाद सीट की हार ने दिल्ली से लेकर लखनऊ तक और बीजेपी से लेकर संघ परिवार तक सभी को सदमे में डाल दिया है. देश ही नहीं दुनिया भर में अगर बीजेपी की किसी एक सीट के हारने की चर्चा इस वक्त सबसे ज्यादा सुर्खियों में बनी है तो वह है अयोध्या. वही अयोध्या जो बीजेपी के हिंदुत्व के विचारधारा के मूल में है, जिस अयोध्या में 22 जनवरी को नए राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद देश भर में 2024 के चुनाव का आगाज हुआ, बीजेपी वही अयोध्या हार गई.

पिछले 40 सालों से जिस अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन की बदौलत बीजेपी ने अपनी पूरी पार्टी खड़ी कर ली, वह अयोध्या भाजपा राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा के कुछ महीनों के भीतर ही हार गई. अभी हार के कारण तलाशे जा रहे हैं, कोई इसे भाजपा के ओबीसी और दलितों के छिटकने की हार बता रहा है, कोई अखिलेश के सॉलिड जातीय समीकरण साधने को वजह मान रहा है, कोई इसे बीजेपी के भीतर दिल्ली और लखनऊ के तनाव से जोड़कर देख रहा है.

अयोध्या की हार सिर्फ बीजेपी ही नहीं बल्कि देशभर के भाजपा समर्थकों और हिंदुत्ववादी सोच के लोगों के लिए एक सदमे जैसा है. यूं तो फैजाबाद समाजवादी पार्टी के सबसे तगड़े समीकरण के सीटों में से एक है, लेकिन इस बार संविधान बदलने का जो माहौल, जो नैरेटिव पिछले कुछ दिनों में तैयार हुआ उसकी पृष्ठभूमि में अयोध्या और उसके सांसद लल्लू सिंह थे, जब बीजेपी ने 400 पार का नारा दिया तो लालू सिंह ही वह पहले सांसद थे जिन्होंने अयोध्या में कहा कि 400 सीट बीजेपी को संविधान बदलने के लिए चाहिए और उसके बाद तो संविधान बदल देने का मुद्दा ऐसा जोर पकड़ा कि बीजेपी पूरे चुनाव में इस पर सफाई देती रही और इस नैरेटिव का जवाब देती घूमती रही, जो बीजेपी अयोध्या के बल पर 2024 चुनाव का नैरेटिव गढ़ रही थी इस अयोध्या से निकली संविधान विरोधी आवाज ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी का पूरा खेल बिगाड़ दिया.

वैसे बीजेपी कोई पहली बार यह सीट नहीं हारी बल्कि 1984 के बाद से फैजाबाद की सीट पहले भी दो बार समाजवादी पार्टी जीत चुकी है. कांग्रेस पार्टी भी दो बार इसे जीत चुकी है, लेकिन राम मंदिर के निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा के बाद बीजेपी यह सीट हार जाएगी यह किसी को यकीन नहीं था. 1991 के बाद से बीजेपी अयोध्या में मजबूत हुई, यहां से बीजेपी के बड़े कुर्मी और हिंदूवादी चेहरे विनय कटियार ने तीन बार जीत दर्ज की, जबकि समाजवादी पार्टी के मित्रसेन यादव 1989, 1998 और 2004 में यहां से सांसद चुने गए. जीतने के बाद भी बीजेपी ने अयोध्या में अपने ओबीसी चेहरे विनय कटियार को हटाकर 2004 से लल्लू सिंह को उम्मीदवार बनाना शुरू किया जो 2014 और 2019 में जीते, जब-जब हिंदुत्व सिर चढ़कर बोला या मोदी मैजिक चला तब तक बीजेपी जीती, लेकिन जैसे ही चुनाव जातियों पर आया भाजपा यहां से चुनाव हार गई.

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इस हार की सबसे बड़ी वजह यहां के जातीय समीकरण बने. अयोध्या में जातियों का आंकड़ा समझ लीजिए. अयोध्या में सबसे ज्यादा ओबीसी वोटर हैं जिसमें कुर्मियों और यादवों की संख्या सबसे ज्यादा है. ओबीसी 22 फीसदी हैं, दलित मतदाता दूसरे नंबर पर आते हैं जिनकी तादाद लगभग 21 फीसदी है और उसमें भी पासी बिरादरी सबसे ज्यादा है, जिस तबके से सपा के जीते हुए उम्मीदवार अवधेश प्रसाद आते हैं. इसके अलावा मुस्लिम भी लगभग 18 फीसदी यहां हैं. ये तीनों मिलकर 50 फीसदी से ज्यादा होते हैं. इस बार ओबीसी वोटरों का एक साथ आना, इसके अलावा दलित वोटरों का इस सामान्य सीट पर दलित कैंडिडेट को जिताने का जुनून और मुस्लिम यादव वोटरों का एकमुश्त सपा का समर्थन, बीजेपी की हार का कारण बना.

इसके अलावा अयोध्या के विकास में लोगों की जमीनों का अधिकार ग्रहण और मन मुताबिक मुआवजा न मिलना भी नाराजगी की एक वजह बनकर सामने आई. अयोध्या में लोगों के बीच एक चर्चा रही कि अयोध्या में अगर मंदिर बना, अयोध्या शहर का अगर विकास हो रहा है तो इसका फायदा अयोध्या के सुदूर गांव वालों को नहीं मिल रहा बल्कि बाहर से आने वाले बिजनेस करने वाले लोग ही उठा रहे हैं. जबकि अयोध्या के लोगों को बड़े-बड़े प्रोजेक्ट में अपनी जमीन में गंवानी पड़ रही है. बीजेपी सिर्फ अयोध्या ही नही हारी बल्कि अयोध्या से सटी सभी सीटें हार गई. बस्ती, अम्बेडकरनगर, बाराबंकी जैसी सीटें भी भाजपा हार गई. पूरे तरीके से जातीय गोलबंदी ने बीजेपी को अयोध्या में धराशाई कर दिया. अयोध्या की हार को सिर्फ बीजेपी की हार नहीं बल्कि हिंदुत्व के उनके पूरे नैरेटिव की हार के तौर पर देखा जा रहा है. जिस अयोध्या में विपक्ष के राम मंदिर नहीं जाने का मुद्दा बीजेपी ने अखिलेश और गांधी परिवार के खिलाफ बनाया था, अब विपक्ष अयोध्या की हार को पीएम मोदी और आरएसएस की हार बता रहा है.

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