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इत्र के शहर कन्नौज में बीजेपी या सपा किसकी महकेगी खुश्बू.

India Junction News Bureau

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Published: May 15, 2024 7:19 pm

कन्नौज की सीट किसके खाते में जा सकती है ? . शुरुवात करते हैं 2004 ….. 2004 में अखिलेश यादव इस सीट से लड़े और 4 लाख 64 हजार वोट मिले….. वहीं बीजेपी को मात्र 1 लाख 12 हजार वोट मिले और बड़ी हार मिली .. इस सीट पर रामानंद यादव को बीजेपी ने अपने उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतारा था। 4 के बाद 2009 में अखिलेश यादव को 3 लाख 56 हजार वोट मिले यानी अखिलेश फिर से चुनाव लड़े थे …. वहीं बीजेपी के सुब्रत पाठक को मात्र 1 लाख 5 हजार वोट मिले और एक बार फिर बीजेपी को करारी हार मिली। … 2012 में उपचुनाव हुआ जिसमें डिंपल यादव निर्विरोध चुनाव जीत गई थीं … फिर 5 साल बाद 2014 में लोकसभा का चुनाव हुआ pm मोदी पहली बार वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे ….. और

देखिए मोदी के लड़ने से उस कन्नौज में जहां बीजेपी को डेढ़ लाख वोट मिलते थे वहां 4 लाख 69 हजार वोट मिले …. डिम्पल यादव को 4 लाख 89 हजार मिले और डिम्पल चुनाव जीत गई बहुत कम मार्जिन से सुब्रत पाठक चुनाव हारे… और जब 5 साल बाद फिर से चुनाव हुआ तो डिंपल चुनाव हार गईं … यानी जब 2019 का चुनाव हुआ तो डिंपल यादव को 5 लाख 50 हजार वोट मिले तो वहीं सुब्रत पाठक को 5 लाख 63 हजार वोट मिले …… सुब्रत पाठक 13 हजार वोट से जीत गए…. अब सवाल है कि सुब्रत पाठक, कन्नोज के सांसद अखिलेश यादव जिस सीट से चुनाव लड़ने जा रहे है क्या माहौल बदल चूका है?क्या फिज़ा बदल चुकी है… जो गढ़ यादव परिवार का रहा करता था…. मुलायम सिंह का जो गढ़ रहा करता था… इस सीट पर इस बार कौन बाजी मरेगा यह अबतक की रिपोर्ट से अंदाजा तो आप लगा ही चुके होंगे …

अखिलेश यादव ने आखिरी क्षणों में कन्नौज से पर्चा भर कर एक तरह से यहां सपा के वोटों की घेरेबंदी कर ली . साथ ही बगल की मैनपुरी, फिरोजाबाद और बदायूं में भी लड़ाई चौकस कर दी है. अखिलेश के पर्चा भरने से यह जरूर हो गया है कि भाजपा का वोटर मौन है और सपा का मुखर. यह स्थिति सपा को खुश करने वाली नहीं है. क्योंकि 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय भी पहले दो चरणों के मतदान के बाद भाजपा का वोटर चुप्पी साध गया था. साथ ही सपा का वोकल हो गया था. इस बड़बोलेपन के चलते ही सपा की बाजी पलट गई थी. लेकिन सपा कार्यकर्त्ताओं की मांग थी कि पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद कन्नौज से चुनाव लड़ें. वे इसी दबाव के चलते ही वह इस बार चुनावी मैदान में हैं……

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आपको बता दें अखिलेश के नामांकन के बाद भाजपा को अपने उम्मीदवार और मौजूदा सांसद सुब्रत पाठक को बदलने का कोई मौका नहीं मिला। ऐसी खबरें थीं कि बीजेपी अखिलेश के खिलाफ हार के डर से सुब्रत पाठक को हटा देगी लेकिन जब सपा ने तेज प्रताप का नाम लिया तो उन्हें लगा कि वे उन्हें हरा सकते हैं। लेकिन अब अखिलेश ने आकर पाठक की हार निश्चित कर दी हैं ऐसा लोगों का मानना है

कन्नौज के निवासी क्या चाहते हैं वह भी आपको बताते हैं ….
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कन्नौज के एक स्थानीय निवासी शिवम तिवारी का कहना है कि “सुब्रत पाठक मुख्यतः उच्च जातियों और दलितों के समर्थन के कारण जीते। उन्होंने सपा सरकार द्वारा यादवों और मुसलमानों के तुष्टीकरण के खिलाफ आवाज उठाई।” इत्र निर्माता मोहम्मद नायाब ने कहा कि वे सपा के पक्के समर्थक हैं साथ ही कहा कि अखिलेश यादव सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं इसलिए कन्नौज सीट पर मुकाबला रोचक हो गया है। अब सपा कार्यकर्ता क्षेत्र में सक्रिय हैं,जो पहले नहीं थे।” मोहम्मद नायब यह भी बताया कि इत्र उद्योग भाजपा के 10 साल के शासन में संकट में है। उन्होंने बताया कि , “सरकार 18% टैक्स ले रही है लेकिन उद्योग के लिए कुछ नहीं कर रही है।”

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