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क्या है गोरखपुर के “खतरनाक हाते” की कहानी?

India Junction News Bureau

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Published: April 29, 2024 1:49 pm

आखिरी बार हरिशंकर तिवारी और उनका हाता तब चर्चा में आया था l जब सीबीआई ने 2020 में उनके आवास पर छापेमारी की थी l यह छापेमारी भी बेटे बहू की आर्थिक धोखाधड़ी की वजह से की गई थी l यही कारण है,कि जब उनका निधन हुआ तो,उन्हें अंतिम विदाई देने कोई भारी भीड़ नहीं उमड़ी l देश प्रदेश में उनके मौत की चर्चा तो हुई, खबर भी बनी लेकिन उनके वर्तमान के कारण नहीं, बल्कि उनके इतिहास के ही कारण l म बात कर रहे हैं,पूर्वांचल के माफिया डॉन हरिशंकर तिवारी की lदरअसल,हरिशंकर तिवारी को राजनीतिक और अपराध जगत में भी पंडित जी कहा जाता था l

हालांकि प्रत्यक्ष तौर पर वो जीवनभर राजनीति ही करते रहे,लेकिन उनके नाम की चर्चा हुई,तो उनके बाहुबल की चर्चा जरूर हुई…..यूपी के पूर्वांचल में एक दौर में जब टीवी और इंटरनेट की पहुंच नहीं थी,तब गांव गांव उनसे जुड़ी कहानियां,किसी अदृश्य देवदूत की तरह सुनाई जाती थी….ऐसे किस्सों में उनकी राजनीतिक उपलब्धियों की चर्चा कम, उनके बाहुबल की कहानियां बहुत ज्यादा होती थी……अस्सी और नब्बे के दशक में गोरखपुर का दूसरा मतलब,हरिशंकर तिवारी होता था….. जी हाते वाले बाबा जी कहीं जिक्र होता था l इसी दौर में पहली बार,1985 में वो जेल से ही चिल्लूपार के विधायक बने l इस तरह जेल में रहकर देश का पहला विधायक बनने का रिकॉर्ड उनके नाम दर्ज हो गया l इसके बाद 1989, 91, 93,96 और 2002 तक,वह लगातार विधायक बनते रहे l लेकिन जेल में रहकर चुनाव जीतने से उनकी जो बाहुबली विधायक की छवि बनी,तो फिर कभी खत्म नहीं हुई l प्रदेश में कोई ऐसा दल नहीं था,जिसके साथ वो न गये हों l

कांग्रेस, भाजपा, सपा और बसपा समय समय पर अपनी जरूरत के मुताबिक,सबके साथ गये l लेकिन अपना स्वतंत्र अस्तित्व भी बनाकर रखा l कांग्रेस में उनकी गहरी पैठ थी और एआईसीसी के सदस्य भी रहे l लेकिन कांग्रेस के पतन के साथ,तिवारी भी पहले भाजपा फिर बाकी दलों का साथ लेते, छोड़ते रहे……1997 में राजीव शुक्ला, श्याम सुंदर शर्मा और बच्चा पाठक के साथ उत्तर प्रदेश में अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस के संस्थापक सदस्य भी रहे…..वर्ष 1998 के बाद प्रदेश में चाहे जिसकी भी सरकार बनी हो, उसमें हरिशंकर तिवारी का कैबिनेट मंत्री बनना एक तरह से पहले से ही तय हो जाता था……हरिशंकर तिवारी 4 मुख्यमंत्रियों कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, मायावती और मुलायम सिंह के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री रहे….कहा जाता है कि,जब कभी राजनीति के अपराधीकरण की चर्चा होती तो हरिशंकर तिवारी का नाम सबसे पहले आता है…..एक दौर में मोस्ट वांटेड रहे हरिशंकर तिवारी ने ही माफिया गिरोहों के सरगनाओं को सत्ता की राह दिखाई और राजनीति में रहते हुए,कानून से कबड्डी कैसे खेली जा सकती है इसका हुनर भी सिखाया…..हरिशंकर तिवारी की कद काठी छोटी और सामान्य थी लेकिन ख्वाब बड़े थे….. हार मानने के लिए वे अंत तक तैयार नहीं हुए…..ब्राह्मण सुलभ विनम्रता उन्हें विरासत में मिली थी,लेकिन मुस्कुराते हुए किसी को निपटा देने का क्रूर फैसला करने में उन्हें न कोई हिचक थी, ना ही कोई देरी……हरिशंकर तिवारी का उभार 70 के दशक से शुरू होता है…..तब गोरखपुर में रविंद्र सिंह,तेजतर्रार छात्र नेता हुआ करते थे

l रविंद्र सिंह की गोल में मनबढ़ वीरेंद्र प्रताप शाही भी शामिल थे l गोरखपुर में मठ का अघोषित शासन था l गोरखपुर विश्वविद्यालय में रविंदर सिंह के छात्रसंघ अध्यक्ष चुने जाने के बाद,ठाकुर बिरादरी का वर्चस्व शहर के अन्य क्षेत्रों में भी बढ़ता गया….हरिशंकर तिवारी और उनके साथ के लोगों को यह वर्चस्व स्वीकार नहीं था l वह चुनौती देने का हर अवसर तलाश रहे थे…… बताते हैं,कि गोरखपुर में तैनात तत्कालीन ब्राह्मण जिलाधिकारी मठ के दखल से खुद को असहज पा रहे थे और वह खुद इसकी काट तलाश रहे थे l हरिशंकर तिवारी ने एक तरह से मठ के समानांतर हाता स्थापित किया और उच्च अधिकारियों का साथ पाकर ठेका पट्टा के जरिए,आर्थिक स्थिति मजबूत करने का अभियान चलाया……देखते ही देखते स्थानीय जायदाद के झगड़े, टेंडर ठेके पट्टे ऐसे सभी मुद्दों के फैसले ‘हाता’ में होने लगे। ठाकुर बनाम ब्राह्मण की लड़ाई अब गोरखपुर से बाहर निकल कर,आजमगढ़, गाजीपुर, देवरिया, बलिया, मऊ के कालेजों तक पहुंच गई…..हर जगह दो धड़े बन गए l एक गुट को हरिशंकर तिवारी का वरदहस्त था,तो दूसरे गुट को वीरेंद्र प्रताप शाही की शह मिली। वीरेंद्र प्रताप शाही अक्खड़ स्वभाव के थे,बात बे बात भी लड़ जाते थे,लेकिन शातिर दिमाग हरिशंकर तिवारी उन्हें हर बार पटखनी दे देते थे lकुल मिलाकर हरिशंकर तिवारी एक ऐसे अलबेले बाहुबली थे जिन्होंने बड़े करीने से माफियागीरी का राजनीतिकरण किया…… एक ओर जातीय संघर्ष में जहां उन्होंने अपने आप को ब्राह्मण नेता के रूप में प्रेजेंट किया था,वहीं दूसरी ओर ठेका पट्टा से लेकर,बिजनेस व्यापार तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया….. उन्होंने राजनीति में माफियाओं के लिए जो रास्ता तैयार किया, उस पर चलकर कई माफिया नेता बन गये l लेकिन ऐसा नहीं है,कि हरिशंकर तिवारी के जीवन में चुनौती नहीं मिली l

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उनको सबसे बड़ी चुनौती श्रीप्रकाश शुक्ला की ओर से मिली l सबसे बड़ा डॉन बनने के ख्वाब में,श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ में वीरेंद्र प्रताप शाही की हत्या कर दी और अगले टारगेट के रूप में हरिशंकर तिवारी की तलाश में जुट गया था l हरिशंकर तिवारी पर श्री प्रकाश शुक्ला का इतना खौफ था,कि जब कहीं आना जाना होता था,तो वह श्रीप्रकाश के पिताजी अथवा उसके मामा या भोला पांडे को साथ लेकर निकलते थे l इंडिया जंक्शन की इस विशेष पेशकश में हमने आज “हाते वाले बाबा”,यानी हरिशंकर तिवारी की उस कहानी को दोहराया,जिन्होंने 70 के दशक से लेकर पूरे 30 साल तक,राजनीतिकरण में अपराधीकरण का वह तड़का लगाया,जिससे आज भी अनुसरण के तौर पर,राजनीति में आजमाया जाता है,या यूं कहें,कि यह राजनीति का एक आजमाया हुआ तरीका बन गया है l जिसके बल पर आज अपराधीकरण के चलते राजनीतिकरण चल रहा है lआपको हमारी यह स्पेशल सीरीज कैसी लगी,अपना फीडबैक जरूर दीजिएगा और अगर आपके जहन में भी कोई ऐसी स्टोरी है ? जो आप हमारे चैनल के माध्यम से जनता तक पहुंचाना चाहते हैं l तो हमें अपने सजेशन भी दीजिएगा l हमारे चैनल को लाइक,शेयर एंड सब्सक्राइब करना ना भूले l अगले सप्ताह हम दिखाएंगे,कुछ ऐसी ही एक्सक्लूसिव स्टोरी…..जिससे सरोकार होगा सीधा आपका l

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