बसपा प्रमुख मायावती अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने के निर्णय से पलट सकती हैं। प्रदेश में बसपा का कांग्रेस से गठबंधन हो सकता है। दूसरे राज्यों में भी पार्टी क्षेत्रीय दलों से गठबंधन करने की संभावना तलाश रही हैगठबंधन की घोषणा चुनाव आचार संहिता लगने के आसपास की जाएगी। वैसे तो पिछले लोकसभा चुनाव से पहले भी मायावती ने अकेले ही लड़ने की घोषणा की थी, लेकिन बाद में सभी को चौंकाते हुए उन्होंने धुर विरोधी समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया था। 12 जनवरी 2019 को सपा से गठबंधन के दौरान मायावती ने कहा था कि भाजपा की देश में दूषित और सांप्रदायिक राजनीति के मद्देनजर उन्होंने यह निर्णय किया है।
गठबंधन के तहत 38 सीटों पर लड़ने वाली बसपा को दस सीटों पर सफलता मिली थी। वर्ष 2014 में अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने से बसपा शून्य पर सिमट गई थी और पिछले विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का सिर्फ एक ही विधायक जीता है, इसलिए सूत्रों का कहना है कि भले ही मायावती अब तक अकेले ही चुनाव लड़ने की बात कहती रही हैं, लेकिन वो गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरेंगी।सूत्र बताते हैं कि बसपा का कांग्रेस से गठबंधन हो सकता है। रालोद के एनडीए में जाने और जिस तरह की 17 लोकसभा सीटें ही उसे मिली हैं, उसको देखते हुए कांग्रेस भी सिर्फ सपा से गठबंधन में अपना कोई खास फायदा नहीं देख रही है। वैसे तो पहले से ही यह चर्चा होती रही है कि कांग्रेस सपा के साथ ही बसपा से भी गठबंधन करना चाहती है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि मायावती तो सपा के रहते कांग्रेस से गठबंधन करने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में कांग्रेस और सपा का गठबंधन संकट में भी पड़ सकता है।बसपा प्रमुख जैसा चाहेंगी वैसा करने को कांग्रेस तैयार बताई जाती है। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस से बसपा के मिलने से दलित-मुस्लिम गठजोड़ का दोनों ही पार्टियों को खासतौर से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फायदा हो सकता है। उल्लेखनीय है कि बसपा ने तेलंगाना राज्य में भी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) से हाथ मिलाया है।